सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्‍ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है।

राजनीतिक दलों को चंदा देने के जरिए को ही इलेक्टोरल बॉन्ड कहते है. मोदी सरकार ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड लाने की घोषणा की थी. अगले ही साल जनवरी 2018 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। उस वक्त सरकार ने इसे पॉलिटिकल फंडिंग की दिशा में सुधार बताया और दावा किया कि इससे भ्रष्टाचार से लड़ाई में मदद मिलेगी।

कब और कौन खरीद सकता है इलेक्टोरल बॉन्ड?

1. इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में जारी किए जाते है.
2. चुनावी बॉन्ड को भारत का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था खरीद सकती है.
3. ये बॉन्ड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं.
4. देश का कोई भी नागरिक एसबीआई की 29 शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद सकते हैं.
5. दान मिलने के 15 दिन के अंदर राजनीतिक दलों को इन्हें भुनाना होता है.
6. बॉन्ड के जरिए सिर्फ वही सियासी दल चंदा हासिल कर सकती हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्होंने पिछले संसदीय या विधानसभाओं के चुनाव में कम से कम एक फ़ीसद वोट हासिल किया हो.

इलेक्टोरल बॉन्ड की विशेषताएँ:-

1.भारतीय स्टेट बैंक 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए तथा 1 करोड़ रुपए मूल्यवर्ग में बॉण्ड जारी करता है।
2.धारक की मांग पर देय और ब्याज मुक्त।
3.भारतीय नागरिकों या भारत में स्थापित संस्थाओं द्वारा क्रय योग्य।
4.व्यक्तिगत रूप से या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से क्रय योग्य।
5.जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिये वैध।

अधिकृत जारीकर्त्ता:– भारतीय स्टेट बैंक (SBI) अधिकृत जारीकर्त्ता है।
चुनावी बॉण्ड नामित SBI शाखाओं के माध्यम से जारी किये जाते हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड में राजनीतिक दलों की पात्रता:-

केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से-कम 1% वोट हासिल किये हों, वे ही चुनावी बॉण्ड हासिल करने के पात्र हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड में पारदर्शिता और जवाबदेही:-

1.दलों को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के साथ अपने बैंक खाते का खुलासा करना होगा।
2.पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए दान बैंकिंग चैनलों के माध्यम से किया जाता है।
3.राजनीतिक दल प्राप्त धनराशि के उपयोग के बारे में बताने के लिये बाध्य हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड से होने वाले लाभ:

1.राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ी।
2.दान राशि के उपयोग को बताने की जवाबदेही।
3.नकद लेन-देन को हतोत्साहित करना।
4.दान दाता गुमनामी का संरक्षण।

इलेक्टोरल बॉन्ड की चुनौतियाँ:-

1.दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं की पहचान  से समझौता कर सकते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
2.सत्ता में मौजूद सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बाधित कर सकता है।
3.अनधिकृत दान की संभावना का उल्लंघन।
4.घोर पूंजीवाद और काले धन के उपयोग का खतरा।
5.घोर पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जो व्यापारियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।
6.कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिये पारदर्शिता और दान सीमा के संबंध में खामियाँ।